दुग्ध-उत्पादन के लिए केंद्र सरकार की ओर से कई योजनाओं को संचालित किया जाता है। इसके लिए दुग्ध उत्पादकों को कई तरह के अनुदान दिये जाते हैं। डेयरी इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट स्कीम के तहत दुग्ध-उत्पादन करने वालों को वित्तीय सहयोग किया जाता है। यह वित्तीय सहयोग छोटे किसानों तथा भूमिहीन मजदूरों को प्रमुख रूप से दिया जाता है।
डेयरी इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट स्कीम भारत सरकार की योजना है, जिसके तहत डेयरी और इससे जुड़े दूसरे व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके तहत छोटे डेयरी फार्म खोलने, उन्नत नस्ल की गाय अथवा भैंस की खरीद के लिए पांच लाख रुपये की सहायता की जाती है। यह राशि दस दुधारू मवेशी की खरीद के लिए दिया जाता है।
इसके अलावा जानवरों के मल से जैविक खाद बनाने के लिए एक यूनिट की व्यवस्था करने के लिए 20, 000 रुपये की मदद मिलती है। किसान, स्वयंसेवी संस्था, किसानों के समूह आदि इस योजना का लाभ ले सकते हैं। यदि किसान अनुसूचित जाति अथवा जनजाति समुदाय से आते हैं तो उन्हें अनुदान पर विशेष छूट मिलती है। इस योजना का संपादन भारत सरकार नाबार्ड की सहायता से करता है।
नाबार्ड के सहयोग से डेयरी उद्योग प्रारंभ करने के लिए छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों को बैंक की ओर से लोन दिलाया जाता है। बैंक से लोन प्राप्त करने के लिए किसान अपने नजदीक के वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अथवा को-ऑपरेटिव बैंक को मवेशी की खरीद के लिए प्रार्थना पत्र के साथ आवेदन कर सकते हैं। ये आवेदन प्रपत्र सभी बैंकों में उपलब्ध होते हैं।
बड़े पैमाने पर दुग्ध-उत्पादन के लिए डेयरी फॉर्म की स्थापना के लिए एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट देना होता है। संस्था द्वारा दिये जाने वाले वित्तीय सहयोग में मवेशी की खरीद, शेड के निर्माण और जरूरी यंत्रों की खरीद आदि शामिल है। प्रारंभिक एक व दो महीने के लिए मवेशियों के चारा का इंतजाम के लिए लगने वाली राशि को टर्म लोन के रूप में दिया जाता है। टर्म लोन में जमीन के विकास, घेराबंदी, जलाशय, पंपसेट लगाने, दूध के प्रोसेसिंग की सुविधाएं, गोदाम, ट्रांसपोर्ट सुविधा आदि के लिए भी लोन देने के विषय में बैंक विचार करता है। जमीन खरीदने के लिए लोन नहीं दिया जाता है।
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