Agriculture News, jobs

Krishi News

फसल हानि में सहायता की पात्रता के मापदंड 50 प्रतिशत को संशोधित करके 33 प्रतिशत किया गया।

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए हाल में फसल हानि में सहायता की पात्रता के मापदंड 50 प्रतिशत को संशोधित करके 33 प्रतिशत कर दिया गया है।

फसल हानि में सहायता की मात्रा को भी विभिन्न श्रेणियों में जैसे- वर्षा सिंचित, सिंचित और बारहमासी के लिए लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है। श्री राधा मोहन सिंह ने ये बात प्राकृतिक आपदा जोखिम कम करने के लिए राष्ट्रीय प्लेटफार्म की बैठक में कही।

श्री सिंह ने कहा कि वर्ष 2009 में सूखा प्रबंधन के लिए राज्यों को मार्गदर्शिका एवं हैंडबुक के रूप में सहायता देने के लिए सूखा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय मैनुअल तैयार किया गया था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों और आद्यतन/संशोधन हेतु आवश्यक्ता को ध्यान में रखते हुए के मुताबिक मैनुअल में संशोधन किया गया और दिसम्बर, 2016 में नया मैनुअल लाया गया है।

श्री सिंह ने कहा कि मंत्रालय सीआरआईडीए के साथ बातचीत कर सूखे के लिए राष्ट्रीय योजना लाने की तैयारी कर रहे है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं राजस्थान राज्यों के सूखा प्रवण 24 जिलों के लिए सूखा रोधन योजना लाने की कार्रवाई भी प्रारंभ की जा चुकी है। सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने 1990 दशक को प्राकृतिक आपदा जोखिम कमी के लिए अंतरराष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया।

नये मैनुअल में सूखा घोषणा पर अध्याय स्पष्ट रूप से अनिवार्य एवं प्रभाव सूचकों को दर्शाता है जिनकी सूखे की घोषणा करने के लिए जरूरत होती है। नये मैनुअल में स्पष्ट रूप से सूखा प्रबंधन में शामिल विभिन्न कार्यकलाप के लिए समय सीमा दर्शाती है, जिसे राज्यों द्वारा अनुसरण करने की जरूरत है।

प्रत्येक वर्ष दक्षिण- पश्चिम मानसून आरंभ होने से पहले आपदा प्रबंधन योजना (सीएमपी) भी प्रकाशित की जाती है। सीएमपी एक स्वागत योग्य कदम है जिसे जन हानि, परिसम्पत्ति एवं पर्यावरण क्षति को कम करने के लिए आपदा स्थिति में कार्रवाई में लाया जा सकता है।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि मौसम विचलन का समाधान करने के लिए देश में सतत खाद्य सुरक्षा के लिए, आईसीएआर के तहत केन्द्रीय अनुसंघान शुष्क कृषि संस्थान (सीआरआईडीए) देश के 615 जिलों से भी अधिक के लिए जिला कृषि आकस्मिक योजना लाई गयी है। विभिन्न परिदृश्यों में फसल पद्धति में परिवर्तन को अपनाने के लिए किसानों को सहायता देने तथा सूखा सहन करने वाली किस्मों और कम जल लेने वाली फसलों को अपनाने के लिए भी कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों और अन्य संस्थानों के माध्यम से किसानों को अपेक्षित सूचना के प्रसार की आवश्यक्ता है।

Source :http://www.pib.nic.in/



Copyright © 2017 · All Rights Reserved · IndiaAgroNet.Com